दिल खोल बैठो शाम है ना हो मुहब्बत आम है दिल हो मुहब्बत में अगर पानी भी लगता जाम है लिखकर मिटाया है बहुत जो लिख सके बे-नाम है दिल में दरारें पड़ चुकी उनमें छुपा एक नाम है आशिक बहुत पीछे मगर सच्चा रहा बे-नाम है दिल खो गया फिर से मिरा उनका मिला हम नाम है --- आदित्य देव राय --- Aditya Deb Roy
तुम्हें मैसेज आता ढेर, क्या ख़त कोई लता है उसी शिद्द्त से पढ़ती हो या कागज़ याद आता है लिखे को चूमती थी हर, लिखा पढ़ने से पहले तुम इमोजी क्या मुहब्बत में वही एहसास लाता है | --- आदित्य देव राय --- Aditya Deb Roy
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