Zehni Tasawwart | ज़ेहनी तसव्वर्त
मैं वो कुतुब ख़ाना* हूँ * कुतुबखाना - Library
जहाँ कई अफ़साने* होते हैं * अफ़साने - Story
कई मुसाफ़िर आते हैं
कुछ हस्ते हैं कुछ रोते हैं
वहीं तख़्तों के एक कोने में
कुछ ख़ाली पैमाने भी रक्खें हैं
कुछ अफ़साना भर जाते हैं
कुछ पैमाना भरने आते हैं
पर अफ़साना निगार* इस क़ुतुबखाने का * अफ़साना निगार - Storyteller
कुछ खोया-खोया रहता है
उस एक शख़्स के इंतज़ार में
टक-टकी लगाए बैठा है
हर मुसाफ़िर को अफ़साना
बस इसी उम्मीद से कहता है
की कोई मुसाफिर तो समझे
इस अफ़साना निगार की बातों को
सबके जाने के बाद कहे
क्यों रोता है तू रातों को
क्यों दर्द दबाए बैठा है
भीगा दे आज तू मुझको
लिपट जा मेरी बाँहों से
रोकूंगी न मैं तुझको
आज मुहब्बत बहने दे
जिसे सिमटे बैठा पलकों पर
आज मुझे तू कहने दे
तुझे चाहूँगी खुद से बढ़कर
--- आदित्य देव राय
--- Aditya Deb Roy
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