Awstha | अवस्था
जो हाथ कभी माँगते नहीं थकते थे
आज वही माँगने से कतराते हैं
खुली आँखों से सपने देखने वाले
आज आँख बंद करने से डरते हैं
सपने तो हज़ार बुने थे बचपन में
वक़्त के साथ काँच की तरह टूटे हैं
बे-फ़िक्र हो कर खुले आसमान में उड़ने वाले
आज बेड़ियों में बंधे बैठे हैं
किसी और की ज़िम्मेदारी
आज किसी और की ज़िम्मेदारी लिए बैठे हैं
--- आदित्य देव राय
--- Aditya Deb Roy
आज वही माँगने से कतराते हैं
खुली आँखों से सपने देखने वाले
आज आँख बंद करने से डरते हैं
सपने तो हज़ार बुने थे बचपन में
वक़्त के साथ काँच की तरह टूटे हैं
बे-फ़िक्र हो कर खुले आसमान में उड़ने वाले
आज बेड़ियों में बंधे बैठे हैं
किसी और की ज़िम्मेदारी
आज किसी और की ज़िम्मेदारी लिए बैठे हैं
--- आदित्य देव राय
--- Aditya Deb Roy
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