दिल खोल बैठो शाम है ना हो मुहब्बत आम है दिल हो मुहब्बत में अगर पानी भी लगता जाम है लिखकर मिटाया है बहुत जो लिख सके बे-नाम है दिल में दरारें पड़ चुकी उनमें छुपा एक नाम है आशिक बहुत पीछे मगर सच्चा रहा बे-नाम है दिल खो गया फिर से मिरा उनका मिला हम नाम है --- आदित्य देव राय --- Aditya Deb Roy
आज फिर उस शहर आ गया हूँ जिस शहर ने एक शायर संवारा था गुस्ताख़ी हुई थी जहाँ इस दिल से पहले दीदार में जो बना बे-सहारा था मुहब्बत हुई भी तो उन नज़रों से जिनके लिए मेरा चेहरा नागवारा था लुटे भी हम उस आवाज़ के पीछे जिन्होंने हमे सुनते नकारा था दीवानगी हुई भी उस चेहरे से जिनके पीछे मैं बना आवारा था पीटना ही रह गया था बाकि वक़्त रहते कलम बन चूका सहारा था आज फिर उस शहर आ गया हूँ जिस शहर ने एक शायर संवारा था --- आदित्य देव राय --- Aditya Deb Roy
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