Classmate | क्लासमेट

वो तो बे-इंतिहा करती थी मुहब्बत   
मैं ही कमबख़्त किसी और के ख़यालों में खोया रहता था

बगल वाली मेज़ से पढाई पूरी कर्ली उसने 
और मैं ख़ामख़ाह खिड़कियों के बहार मुहब्बत खोजा करता था 

सालों बाद फिर कल मिले हम 
उसके चेहरे का नूर कुछ बदला हुआ था 

दोस्तों ने कहा एक ज़माने में 
उसका दिल भी मेरे लिए धड़कता था 

जो कभी उसकी आँखों में दिखा करता था 
आज मेरी आँखों में उसे दिख रहा था 

बगल वाली को छोर 
बेवक़ूफ़ों की तरह मैं किसी और के पीछे पड़ा था 

अजनबियों की तरह हम मिले तो जरूर 
पर दोनों का दिल बस एक बात केह रहा था 

दिल पिघला भी तो आज इस मोड़ 
जब उसके साथ कोई और खड़ा था 

                                          ------ Aditya Deb Roy

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