Ek Deewan | एक दीवाना

हम आँखों के दीवाने हैं
उन आँखों को खोजा करते हैं
इस ज़माने के भीड़ में
बस यूँ ही खोया करते हैं
आज फिर वो दिखी फिर से समा थमा
पर न जाने क्या हुआ मुझको 
फिर न कुछ कह सका उसको 

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उसे छुपके देखना अच्छा लगता है
देख के मुस्कुराना अच्छा लगता है 
उसको मुस्कुराता देख अच्छा लगता है
फ़िर भी दिल के जज़्बात कहने में उससे डर लगता है

न उसका नाम पता था 
न उसके बारे में कुछ पता था 
बस दिल में उसका एक एहसास बसा था 
ऐसे ही एक साल गुज़र गए 
कुछ आदत बिगड़े पर लगभग कुछ सुधर से गए 

फिर आख़िर उसका रास्ता रोक ही लिया 
दोस्ती की किताब को खोल ही दिया 
हर दिन किताब का पन्ना पलटता रहा 
धीरे-धीरे दिल की किताब भी खोलता रहा 

उसका साथ अब और अच्छा लगने लगा है
उसका अब हर पल अपना लगने लगा है 
उसकी ख़ुशी अब जीने की वजह बन गयी है 
आँखें अब हर पल उससे दिल की बात कह रही है 

अब उसके सामने दिल की कताब भी खुल चुकी है 
अब वो भी मेरे जज़्बात समझ चुकी है 
पर फ़िर भी उससे कहने से डरता हूँ 
पर दीवानों की तरह उसपे मरता हूँ 

प्यार तो वो भी मुझसे करने लगी है 
मेरी तरह वो भी इज़हार-ए-मुहब्बत से डर्टी है 
एक पल भी याद किये बिना न रह पति है 
और प्यार से मुझे झल्ला कहती है 

बिना कुछ कहे उसका मुहे समझना अच्छा लगता है 
उसके आँखों में अपने लिए जज़्बात देख अच्छा लगता है
एक दुसरे को दूर से देख मुस्कुराना अच्छा लगता है 
साथ बिताया हुआ हर लम्हा याद करना अच्छा लगता है 

इस भीड़ में आखिर उसका हाथ थाम ही लिया 
ज़िन्दगी का तो पता नहीं हर लम्हे में उसका साथ माँग ही लिया 
जवाब में बस उसने लबों को लबों से ढक दिया 
और ज़िन्दगी के हर लम्हे के लिए मेरा हाथ थम लिया 

                     --- आदित्य देव राय 
                     --- Aditya Deb Roy 


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