Metro Mohobbat | मेट्रो मुहब्बत

उसका चेहरा पन्नों में छुपा था 
दूर बैठा कोई उसे देख रहा था 

साथ का सफ़र तो रोज़ का था 

पर उसके हाथ में आज कुछ नया था 

पन्नों को पलटने के बहाने हर रोज़ की तरह उसने मुस्कुरा दिया 

उसे भी पसंद है किताबें आँखों आँखों में मुझे बता दिया 

किताब को सीट पर रख कर अपने स्टेशन पर उतर गयी 

इशारों-इशारों में ये मेरे लिए है कह गयी 

Read me के tag के निचे Hi और अपना नाम छोड़ गयी 

Books on the Delhi Metro  की वो बुक दो इंट्रोवर्ट की पहली चैट विंडो बन गयी 

इंस्टाग्राम  पे ड्रॉप्ड अ बुक  का पोस्ट आया 

रिप्लाई में मैंने बस Gotcha ❤️ बनाया 

                             --- आदित्य देव राय
                             --- Aditya Deb Roy

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